गुरुवार, 30 जुलाई 2020

सान्निध्‍य स्रोत (काव्‍य निर्झरिणी) ई प्रवेशांक हेतु आह्वान

सम्‍पादकीय
ई-प्रवेशांक हेतु आह्वान
प्रिय  मित्रो,
प्रकृति प्रदत्‍त आज के विद्रूप वातावरण को देख कर सारा विश्‍व हतप्रभ हैं. जीवन में चेचक जैसी महामारी भी हमने झेली थी, किंतु आज जैसी स्थिति उस समय भी नहीं थी. पूरे विश्‍व को आज की विकट परिस्थितियों ने हिला दिया है. विश्‍व में ग्‍यारह लाख पर पहुँचती कोरोना (कोविड-19) से संक्रमित संख्‍या और एक लाख के आस पास पहुँचती मौतें, साथ ही उसके इतर प्रभाव यथा वज्रपात, सतत भूकम्‍प, बाढ़, समुद्री तूफ़ान आदि जो प्रकृति जन्‍य हैं, मानव द्वारा अदम्‍य साहस से झेले भी जा रहे हैं, किंतु अभी तक वर्तमान प्राकृतिक और मानवीय परिस्थितियों को साथ में रखते हुए इसका यथोचित हल निकालने में हम असफल ही हुए हैं, कहा जा सकता है.
हमारा समाज भी इसकी चपेट में आया है, किंतु बहुत कम. इसका प्रमुख कारण है हमारी सात्विक जीवनशैली, खान-पान और सदाचरण.
ss2.jpgलॉकडाउन काल, अनलॉक काल में सबसे ज्‍यादा विचार विभिन्‍न ई- पत्र पत्रिकाओं, ई-पटलों, ई-काव्‍य गोष्ठियों, ई-किताबों, एकल काव्‍यपाठ आदि के माध्‍यम से जिस विधा में पढ़ने, सुनने, कहने को मिले वह है ‘काव्‍य’.
काव्‍य की किसी भी विधा में अपने विचारों को संक्षेप में कहने का माध्‍यम विश्‍व में सर्वाधिक सफल माना गया है.  
काव्‍य निर्झरिणी आह्वान
जहाँ तक हमारे समाज का प्रश्‍न है, हम यदि पीछे मुड़ कर देखें तो सामाजिक पत्र पत्रिकाएँ आरंभ हुईं और थक-हार कर बंद भी हुईं, जिनमें मेरी पत्रिका ‘सान्निध्‍य स्रोत’ भी सम्मिलित है.
वर्तमान में एक मात्र त्रैमासिक पत्रिका ‘तैलंगकुलम्’ प्रकाशन वरेण्‍य है, जो वर्तमान तकनीक के साथ चलते हुए समाज को नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है.
वर्ष 2020 तो प्रदूषित ही रहा है, इसलिए 2021 में आपकी प्रिय रही इस पत्रिका को नई सोच के साथ  बदलने के प्रयासों में आपका वैचिारिक सहयोग अत्‍यावश्‍यक है. आइये, अपने विचारों के सम्‍प्रेषण के लिए आपके पास अभी 5 महीने हैं.
1995 में ‘सान्निध्‍य-स्रोत’ को साहित्‍य की सभी विधाओं में  त्रैमासिक पत्रिका के रूप में आरंभ किया गया था.
आज हमारे समाज के मूर्द्धन्‍य साहित्‍यकारों में काव्‍य विधा में समृद्ध होते हुए भी एक ऐसा माध्‍यम अभी तक विकसित नहीं हुआ है, जिससे उनकी काव्‍य रचनाओं को संग्रहीत किया जा सके, ताकि सनद रहे.  या तो उनका साहित्‍य (काव्‍य की किसी भी विधा में) स्‍वयं के पास संरक्षित है या समय-समय पर आरंभ हुई पत्र पत्रिकाओं में छप कर छिप गया, जिन्‍हें ढूँढ़ना आज सहज नहीं. काल के गर्त में बंद हुई पत्र पत्रिकाओं में वे आज छटपटा रही हैं.
इसी को ध्‍यान में रखते हुए ‘सान्निध्‍य स्रोत’  ने इसे नये कलेवर में साहित्य की ‘काव्‍य’ विधा में बदलने का विचार किया है. यह ई-पत्रिका अभी त्रैमासिक होगी. जिसे फेसबुक पटल के शीघ्र आरंभ किये जाने वाले फेसबुक समूह ‘सान्निध्‍य स्रोत’ (काव्‍य निर्झरिणी) में भी प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही यह मेरे ब्‍लॉग http:\\saannidhyasrot.blogspot.com http:\\saannidhya.blogspot.com पर भी देखा जा सकेगा. इसके लिए आर्थिक सहयोग नहीं, वैचारिक सहयोग चाहिए क्‍योंकि वैचारिक सहयोग के अभाव में ही ‘सान्निध्‍य स्रोत’ बंद हुई थी न कि ‘आर्थिक सहयोग’ के कारण. वैचारिक सहयोग अनुशासित वैचारिक सामग्री के माध्‍यम से पत्रिका की महती आवश्‍यकता होती है. हमारा समाज एक समृद्ध बुद्धिजीवी समाज है्. कला और संस्‍कृति के क्षेत्र में हमारे समाज का अनुदान हमेशा से वरेण्‍य रहा है.
क्‍यों न आनेवाले बहुमूल्‍य समय के लिए हमारे समाज के पूर्वजों, वर्तमान में निवास कर रहे वानप्रस्‍थी एवं उत्‍साही युवा रचनाकारों की रचनाओं को हम प्रकाशित करें और भविष्‍य की एक अप्रतिम धरोहर तैयार करें, ताकि आने वाली पीढ़ी को हम उनके साहित्‍य की विरुदावली सुना सकें.
अत: पत्रिका के स्‍वरूप को काव्‍य विधा में बदलने के लिए वर्तमान में इसके औचित्‍य पर केवल अपने विचार ही भेजें. काव्‍य सामग्री हेतु आपको शीघ्र ही ‘सान्निय स्रोत’ (काव्‍य निर्झरिणी) के फेसबुक पेज पर पोस्‍ट करने हेतु आमंत्रित किया जाएगा.
फि‍लहाल अपने विचार केवल सान्निध्‍य स्रोत (काव्‍य निर्झरणी) फेसबुक समूह पर ही प्रेषित करें.
किमधिकम् !!
डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’

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