शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

सान्निध्‍य स्रोत (काव्‍य निर्झरिणी) के ई प्रवेशांक हेतु आह्वान


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मई-जुलाई 2020 तैलंगकुलम अंक


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कोटा में निवास कर रहे पंचनदी वंश के एक मात्र परिवार की वयोवृद्ध श्रीमती स्‍नेहलता (कुसुम) जी का 95 वर्ष की आयु में गोलोकगमन



श्रीमती स्‍नेहलता तैलंग (कुसुम) पत्‍नी स्‍व. पंचनदी श्री कृष्‍णराय जी का 95 वर्ष की उम्र में कोटा में दिनांक 31
पंचनदी श्रीमती स्‍नेहलता तैलंग
जुलाई को ब्रह्ममुहूर्त में प्रात: 4 बजे गोलोकगमन हो गया. वे कुछ समय से बहुत निर्बलता अनुभव कर रही थीं और कुछ समय पूर्व ही सबसे बड़ी पुत्री गो. निशा जी के कोटा में ही निधन से शोक संतप्‍त थीं. अपने ही सामने अपने ज्‍येष्‍ठ पुत्र और पुत्रियों के निधन के कारण भी वे ज्यादातर मौन रहती थीं और वृद्धावस्‍था के कारण बिस्‍तर पर आ गई थीं. उन्‍हें किसी भी प्रकार का रोग नहीं था. वे अहमदाबाद निवासी स्‍व. रेही गोपीनाथजी की बहिन थीं एवं काँच के व्‍यवसायी श्री विनय रेही की बुआ थीं. आप के तीन पुत्र स्‍व. श्री प्रभास (दीपक) तैलंग- श्रीमती मंजुलता, कनिष्‍ठ विशेषज्ञ (मेडिसिन) डॉ. बी. सी. तैलंग- सौ. अंशु और प्रिंटिंग व्‍यवसाय से जुड़े श्री सुबोध तैलंग- सौ. शालिनी सहित उनके 5 पुत्रियाँ स्‍व. निशा गोस्‍वामी, बड़ौदा स्‍व. वंदना करंभा, बड़ौदा, सौ.पूर्णिमा-श्री रवींद्र तैलंग, सौ. कुमुद (मुन्‍नी)-श्री अनिल तैलंग और स्‍व. गो. सौ. कविता- गो. श्‍याम मनोहर जी महाराज पोरबंदर-राजकोट. कोटा में समाज में वे सबसे वृद्ध महिला थीं और मिलनसार, व्‍यवहारकुशल और संस्‍कारवान थी, पुष्टिमार्गीय सम्‍प्रदाय का गहन अनुभव था. घर में निधि स्‍वरूप बिराजमान होने के कारण नित्‍य सेवा एवं सभी के द्वारा संध्‍यावंदन और नित्‍य नियम से रहने वाले परिवार में वे अपने पीछे 3पुत्र-5पुत्री 3पौत्र-3पौत्री, 2प्रपौत्र- 2प्रपौत्री, दोहित्र-दौहित्री सहित भरा पूरा परिवार छोड़ कर गईं. उत्‍तर भारतीय दाक्षिणात्‍य वैल्‍लनाडु परिवार में पंचनदी वंश का यह एक मात्र परिवार ही है, जो कोटा में स्‍थाई निवास कर रहा है. लगभग दस वर्ष पूर्व प्रथम प्रपौत्र के जन्‍म के साथ उन्‍हें घर में ही भव्‍य समारोह आयोजित कर स्‍वर्ण सोपान भी चढ़ाया गया था. स्‍व. प्रभास तैलंग व डॉ. बी.सी. तैलंग कोटा में संघ के बहुत ही सम्‍मानित व्‍यक्ति होने के कारण अंतिम यात्रा में संघ एवं संस्‍कार भारती के अनेक सदस्‍यों सहित कोटा में समाज के प्रत्‍येक घर से कोई न कोई सम्मिलित हुआ. कोरोना के कारण उपस्थिति ज्‍यादा नहीं थी.

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

सान्निध्‍य स्रोत (काव्‍य निर्झरिणी) ई प्रवेशांक हेतु आह्वान

सम्‍पादकीय
ई-प्रवेशांक हेतु आह्वान
प्रिय  मित्रो,
प्रकृति प्रदत्‍त आज के विद्रूप वातावरण को देख कर सारा विश्‍व हतप्रभ हैं. जीवन में चेचक जैसी महामारी भी हमने झेली थी, किंतु आज जैसी स्थिति उस समय भी नहीं थी. पूरे विश्‍व को आज की विकट परिस्थितियों ने हिला दिया है. विश्‍व में ग्‍यारह लाख पर पहुँचती कोरोना (कोविड-19) से संक्रमित संख्‍या और एक लाख के आस पास पहुँचती मौतें, साथ ही उसके इतर प्रभाव यथा वज्रपात, सतत भूकम्‍प, बाढ़, समुद्री तूफ़ान आदि जो प्रकृति जन्‍य हैं, मानव द्वारा अदम्‍य साहस से झेले भी जा रहे हैं, किंतु अभी तक वर्तमान प्राकृतिक और मानवीय परिस्थितियों को साथ में रखते हुए इसका यथोचित हल निकालने में हम असफल ही हुए हैं, कहा जा सकता है.
हमारा समाज भी इसकी चपेट में आया है, किंतु बहुत कम. इसका प्रमुख कारण है हमारी सात्विक जीवनशैली, खान-पान और सदाचरण.
ss2.jpgलॉकडाउन काल, अनलॉक काल में सबसे ज्‍यादा विचार विभिन्‍न ई- पत्र पत्रिकाओं, ई-पटलों, ई-काव्‍य गोष्ठियों, ई-किताबों, एकल काव्‍यपाठ आदि के माध्‍यम से जिस विधा में पढ़ने, सुनने, कहने को मिले वह है ‘काव्‍य’.
काव्‍य की किसी भी विधा में अपने विचारों को संक्षेप में कहने का माध्‍यम विश्‍व में सर्वाधिक सफल माना गया है.  
काव्‍य निर्झरिणी आह्वान
जहाँ तक हमारे समाज का प्रश्‍न है, हम यदि पीछे मुड़ कर देखें तो सामाजिक पत्र पत्रिकाएँ आरंभ हुईं और थक-हार कर बंद भी हुईं, जिनमें मेरी पत्रिका ‘सान्निध्‍य स्रोत’ भी सम्मिलित है.
वर्तमान में एक मात्र त्रैमासिक पत्रिका ‘तैलंगकुलम्’ प्रकाशन वरेण्‍य है, जो वर्तमान तकनीक के साथ चलते हुए समाज को नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है.
वर्ष 2020 तो प्रदूषित ही रहा है, इसलिए 2021 में आपकी प्रिय रही इस पत्रिका को नई सोच के साथ  बदलने के प्रयासों में आपका वैचिारिक सहयोग अत्‍यावश्‍यक है. आइये, अपने विचारों के सम्‍प्रेषण के लिए आपके पास अभी 5 महीने हैं.
1995 में ‘सान्निध्‍य-स्रोत’ को साहित्‍य की सभी विधाओं में  त्रैमासिक पत्रिका के रूप में आरंभ किया गया था.
आज हमारे समाज के मूर्द्धन्‍य साहित्‍यकारों में काव्‍य विधा में समृद्ध होते हुए भी एक ऐसा माध्‍यम अभी तक विकसित नहीं हुआ है, जिससे उनकी काव्‍य रचनाओं को संग्रहीत किया जा सके, ताकि सनद रहे.  या तो उनका साहित्‍य (काव्‍य की किसी भी विधा में) स्‍वयं के पास संरक्षित है या समय-समय पर आरंभ हुई पत्र पत्रिकाओं में छप कर छिप गया, जिन्‍हें ढूँढ़ना आज सहज नहीं. काल के गर्त में बंद हुई पत्र पत्रिकाओं में वे आज छटपटा रही हैं.
इसी को ध्‍यान में रखते हुए ‘सान्निध्‍य स्रोत’  ने इसे नये कलेवर में साहित्य की ‘काव्‍य’ विधा में बदलने का विचार किया है. यह ई-पत्रिका अभी त्रैमासिक होगी. जिसे फेसबुक पटल के शीघ्र आरंभ किये जाने वाले फेसबुक समूह ‘सान्निध्‍य स्रोत’ (काव्‍य निर्झरिणी) में भी प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही यह मेरे ब्‍लॉग http:\\saannidhyasrot.blogspot.com http:\\saannidhya.blogspot.com पर भी देखा जा सकेगा. इसके लिए आर्थिक सहयोग नहीं, वैचारिक सहयोग चाहिए क्‍योंकि वैचारिक सहयोग के अभाव में ही ‘सान्निध्‍य स्रोत’ बंद हुई थी न कि ‘आर्थिक सहयोग’ के कारण. वैचारिक सहयोग अनुशासित वैचारिक सामग्री के माध्‍यम से पत्रिका की महती आवश्‍यकता होती है. हमारा समाज एक समृद्ध बुद्धिजीवी समाज है्. कला और संस्‍कृति के क्षेत्र में हमारे समाज का अनुदान हमेशा से वरेण्‍य रहा है.
क्‍यों न आनेवाले बहुमूल्‍य समय के लिए हमारे समाज के पूर्वजों, वर्तमान में निवास कर रहे वानप्रस्‍थी एवं उत्‍साही युवा रचनाकारों की रचनाओं को हम प्रकाशित करें और भविष्‍य की एक अप्रतिम धरोहर तैयार करें, ताकि आने वाली पीढ़ी को हम उनके साहित्‍य की विरुदावली सुना सकें.
अत: पत्रिका के स्‍वरूप को काव्‍य विधा में बदलने के लिए वर्तमान में इसके औचित्‍य पर केवल अपने विचार ही भेजें. काव्‍य सामग्री हेतु आपको शीघ्र ही ‘सान्निय स्रोत’ (काव्‍य निर्झरिणी) के फेसबुक पेज पर पोस्‍ट करने हेतु आमंत्रित किया जाएगा.
फि‍लहाल अपने विचार केवल सान्निध्‍य स्रोत (काव्‍य निर्झरणी) फेसबुक समूह पर ही प्रेषित करें.
किमधिकम् !!
डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

सान्निध्य: कोरोना (Covid-19) गुटका

लॉक डाउनलोड के दौरान कोरोना विषय पर विभिन्‍न भावों, वातावरण, निदान, लक्षण, प्रतिक्रियायें, संक्रमण आदि पर प्रकाशित छंदात्‍मक 46 रचनाओं का संग्रह है गुटका. इसे साइड बार में प्रकाशित पुस्तिका का अवलोकन करें.