गुरुवार, 6 अगस्त 2020

लता के गाये इन गीतों से मिली र्कीति भट्ट को एक नई पहचान (भाग-3)

कीर्ति परिवार के साथ. बायें से सौ. कीर्ति, पति श्री शिशिर गोस्‍वामी, पु्त्र मुरली, पुत्री यमुना
पुष्टिमार्गीय सम्‍प्रदाय के परिवार में विवाह होने के कारण घर में अष्‍ट छाप पद्धति से होने वाली स्‍वरूप की सेवाविधान के शास्‍त्रीय संगीत पर आधारित हवेली संगीत के पदों के निरंतर गायन और अभ्‍यास से सौ. र्की‍ति भट्ट को इस क्षेत्र मे सहजता से गीतों को गाने में सफलता मिली. सफलता का एक और कारण भी था. बचपन से ही घर में संगीत का वातारण मिला. पिता ऑर्केस्‍ट्रा में की बार्ड प्‍लेयर थे, इसलिए घर में फिल्‍मी गानों पर पिता संगीत का अभ्‍यास गा कीर्ति गानों का अभ्‍यास करते थे, जिससे यह आदत पड़ी कि कहाँ संगीत आयेगा तो उसे रुकना है और जब वह गाये तो बैकग्राउंड संगीत कैसे देना है. शिक्षा पूरी करते ही उसका विवाह हो गया और स्‍टेज की कलाकार बनने का उसका स्‍वप्‍न अधूरा रह गया. पर परिवार में संगीत का माहौल मिला पर वह फिल्‍मी संगीत का माहौल नहीं था बल्कि हवेली संगीत का माहौल था. जिसके निरंतर अभ्‍यास से कीर्ति ने पाँच साल में एक लय प्राप्‍त कर ली थी. तब तक कराओके का प्रचलन अपनी गति पकड़ने लगा था. आइये कराओके में प्रतिस्‍पर्द्धा में एक मकाम हासिल करने में वह उसके परिवार के हर सहयोग को सबसे पहले मानती है उसके बाद उसके गाये जिन गीतों ने उसे पहचान दिलाई उनको. सुनते हैं और आनंद लेते हैं उन गीतों का-
1. ऐ दिले नादान (रज़ि‍या सुलतान)

2. बड़ा नटखट है रे कृष्‍ण कन्‍हैया (अमर प्रेम)

3. पानी रे पानी (माचिस)

4. इतनी शक्ति हमें देना दाता 

5. आज सोचा तो आँसू भर आए


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