बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

काव्‍य निर्झरिणी: सम्‍पादकीय

काव्‍य निर्झरिणी: सम्‍पादकीय: साथियो, प्रवेशांक से पूर्व एक झलक के रूप में पत्रिका का ब्‍लॉग रूप आपके समक्ष है. 'सान्निध्‍य स्रोत' का काव्‍य संस्‍करण 'काव्‍य ...

बुधवार, 2 सितंबर 2020

आह्वान

साथियों 'सान्निध्‍य स्रोत' का एक समूह आरंभ किया है. मुझे पूरा विश्‍वास है कि आगे 'आह्वान' पढ़ेंगे और अपने विचार यहाँ अवश्‍य प्रस्‍तुत करेंगे. समाज के प्रबुद्ध वर्ग को जोड़ें और ज्‍यादा से ज्‍यादा विचार प्रकाशित करें ताकि शीघ्र ही ''सान्निध्‍य स्रोत'' को ''काव्‍य निर्झरिणी'' (ई-पत्रिका) के नये कलेवर में उसके माध्‍यम से अपने समाज के पूर्वजों, वानप्रस्‍थी, नई पीढ़ी की काव्‍य रुचि का एक दस्‍वावेज तैयार किया जा सके, ताकि सनद रहे.
सम्‍पादकीय
सान्निध्‍य स्रोत
प्रिय मित्रो,
प्रकृति प्रदत्त आज के विद्रूप वातावरण को देख कर सारा विश्व हतप्रभ हैं. जीवन में चेचक जैसी महामारी भी हमने झेली थी, किंतु आज जैसी स्थिति उस समय भी नहीं थी. पूरे विश्व को आज की विकट परिस्थितियों ने हिला दिया है. विश्व में ग्यारह लाख पर पहुँचती कोरोना (कोविड-19) से संक्रमित संख्या और एक लाख के आस पास पहुँचती मौतें, साथ ही उसके इतर प्रभाव यथा वज्रपात, सतत भूकम्प, बाढ़, समुद्री तूफ़ान आदि जो प्रकृति जन्य हैं, मानव द्वारा अदम्य साहस से झेले भी जा रहे हैं, किंतु अभी तक वर्तमान प्राकृतिक और मानवीय परिस्थितियों को साथ में रखते हुए इसका यथोचित हल निकालने में हम अभी तक असफल ही हुए हैं, प्रयासरत हैं, कहा जा सकता है.
हमारा समाज भी इसकी चपेट में आया है, किंतु बहुत कम. इसका प्रमुख कारण है हमारी सात्विक जीवनशैली, खान-पान और सदाचरण.
लॉकडाउन काल, अनलॉक काल में सबसे ज्यादा विचार विभिन्न ई- पत्र पत्रिकाओं, ई-पटलों, ई-काव्य गोष्ठियों, ई-किताबों, एकल काव्यपाठ आदि के माध्यम से जिस विधा में पढ़ने, सुनने, कहने को मिले वह है ‘काव्य’.
काव्‍य की किसी भी विधा में अपने विचारों को संक्षेप में कहने का माध्‍यम विश्‍व में सर्वाधिक सफल माना गया है.
जहाँ तक हमारे समाज का प्रश्‍न है, हम यदि पीछे मुड़ कर देखें तो सामाजिक पत्र पत्रिकाएँ आरंभ हुईं और थक-हार कर बंद भी हुईं, जिनमें मेरी पत्रिका ‘सान्निध्‍य स्रोत’ भी सम्मिलित थी. वर्तमान में एक मात्र त्रैमासिक पत्रिका ‘तैलंगकुलम्’ का प्रकाशन वरेण्‍य है, जो वर्तमान तकनीक के साथ चलते हुए समाज को नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है.
वर्ष 2020 तो प्रदूषित ही रहा है, इसलिए 2021 में आपकी प्रिय रही इस पत्रिका 'सान्निध्‍य स्रोत' को नई सोच के साथ बदलने के प्रयासों में आपका वैचिारिक सहयोग अत्‍यावश्‍यक है. आइये, अपने विचारों के सम्‍प्रेषण के लिए आपके पास अभी 5 महीने हैं.
1995 में ‘सान्निध्‍य-स्रोत’ को साहित्‍य की सभी विधाओं में त्रैमासिक पत्रिका के रूप में आरंभ किया गया था.
आज हमारे समाज में मूर्द्धन्य साहित्यकारों में काव्य विधा में समृद्ध होते हुए भी एक ऐसा माध्यम अभी तक विकसित नहीं हुआ है, जिससे उनकी काव्य रचनाओं को संग्रहीत किया जा सके, ताकि सनद रहे. या तो उनका साहित्य (काव्य की किसी भी विधा में) स्वयं के पास संरक्षित है या समय-समय पर आरंभ हुई पत्र पत्रिकाओं में छप कर छिप गया, जिन्हें ढूँढ़ना आज सहज नहीं. काल के गर्त में बंद हुई पत्र पत्रिकाओं में वे आज छटपटा रही हैं.
इसी को ध्‍यान में रखते हुए ‘सान्निध्य स्रोत’ ने इसे नये कलेवर में साहित्य की ‘काव्य’ विधा में बदलने का विचार किया है. यह ई-पत्रिका अभी त्रैमासिक होगी. जिसे फेसबुक पटल के शीघ्र आरंभ किये जाने वाले फेसबुक समूह ‘सान्निध्य स्रोत’ (काव्य निर्झरिणी) में भी प्रकाशित किया जाएगा. साथ ही यह मेरे ब्‍लॉग http:\\saannidhyasrot.blogspot.com http:\\saannidhya.blogspot.com
पर भी देखा जा सकेगा. इसके लिए आर्थिक सहयोग नहीं, वैचारिक सहयोग चाहिए क्योंकि वैचारिक सहयोग के अभाव में ही ‘सान्निध्य स्रोत’ बंद हुई थी न कि ‘आर्थिक सहयोग’ के कारण. वैचारिक सहयोग अनुशासित वैचारिक सामग्री के माध्‍यम से पत्रिका की महती आवश्‍यकता होती है. हमारा समाज एक समृद्ध बुद्धिजीवी समाज है. कला और संस्‍कृति के क्षेत्र में हमारे समाज का अनुदान हमेशा वरेण्‍य रहा है.
क्‍यों न आनेवाले बहुमूल्‍य समय के लिए हमारे समाज के पूर्वजों, वर्तमान में निवास कर रहे वानप्रस्‍थी एवं उत्‍साही युवा रचनाकारों की रचनाओं को हम प्रकाशित करें और भविष्‍य की एक अप्रतिम धरोहर तैयार करें, ताकि आने वाली पीढ़ी को हम उनके साहित्‍य की विरुदावली सुना सकें.
अत: पत्रिका के स्‍वरूप को काव्‍य विधा में बदलने के लिए वर्तमान में इसके औचित्य पर केवल अपने विचार ही भेजें. काव्‍य सामग्री हेतु आपको शीघ्र ही एक ईवेंट के तहत ‘सान्निय स्रोत’ के फेसबुक पेज पर पोस्‍ट करने हेतु आमंत्रित किया जाएगा.
फि‍लहाल अपने विचार केवल सान्निध्य स्रोत (काव्य निर्झरणी) फेसबुक समूह पर ही प्रेषित करें.
किमधिकम् !!
डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

एक झलक

एक झलक
 सान्निध्‍य स्रोत के काव्‍य संस्‍करण 'काव्‍य निर्झरिणी' के प्रवेशांक से पूर्व 'एक झलक' का अंक 'अक्‍टूबर-दिसम्‍बर, 2020 के रूप में 1 अक्‍टूबर को प्रकाशित होना है. इसलिए इसके लिए तैयार किया गया है एक इवेंट 'एक झलक' 
इस ईवेंट में काव्‍य विधा में समाज के सभी प्रतिष्ठित काव्‍य रसिकों, रचनाकारों को सम्मिलित किया गया है.

रविवार, 16 अगस्त 2020

Kitty_Bhatt के लुभावने गीतों का सफ़र (भाग-5)

सैंंकड़ों गीतों को एकल व युगल कोलेब में सबसे ज्‍यादा पसंद की जाने वाली कराओके क्‍वीन 'कीर्ति भट्ट (Kitty_Bhatt)ने कई सदाबहार गीतों से श्रोताओं व कराओके गायक / गायिकाओं को लुभाया है. कई शोर्ट वर्जन कई पूरे गीतों को उसकी आवाज के साथ अपनी आवाज़ मिलाई है. आइये ऐसे ही कुछ लुभावने गीतों हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए (कर्मा), पिया तोसे नैना लागे रे (गाइड), तुम्‍हें याद करते करते (आम्रपाली), तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया (कुदरत), काहे छेड़ छेड़ (देवदास) का आनंद लें-


हर करम अपना करेंगे
https://link.smule.com/dK3D8R4sY8?channel=Copy-Link&lyricStyle=0
पिया तोसे नैना लागे रे
तुम्‍हें याद करते करते

तूने ओ रंगीले कैसा जादू
काहे छेड़ छेड़ मोहे