पदांत- होगी अब
समांत- अनी
मुक्तक लोक में प्रकाशित रचना |
बचपन से ही प्रीत पालनी होगी अब.
देने होंगे बचपन से सुसंस्कार भी,
घर की’ अस्मिता भी सँभालनी होगी अब.
होना होगा प्रशिक्षित, आत्मरक्षा को,
नारी को क्षमता निखारनी होगी अब.
स्वावलंबी’ बनना होगा हर बाला को,
अबला की सूरत उतारनी होगी अब.
नारी है समर्थ उसकी नभ तक उड़ान,
महिलाओं की युद्ध वाहिनी होगी अब.
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